वीर अब्दुल हमीद: जन्म, जीवनी और इतिहास

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वीर अब्दुल हमीद: जन्म, जीवनी और इतिहास

Veer Abdul Hameed

वीर अब्दुल हमीद, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धरमपुर गाँव के रहने वाले एक मध्यम वर्ग परिवार में 1 जुलाई, 1933 को जन्म हुआ था। इनके पिताजी का नाम मोहम्मद उस्मान मसऊदी और माताजी का नाम सकीना बेगम था। ये जाति के मुस्लिम दर्जी थे। इनके यहाँ कपड़े की सिलाई होती थी इनका यही पेशा था। लेकिन अब्दुल हमीद का सिलाई के काम में बिलकुल मन नहीं लगता था।

लेकिन ये कुस्ती में रूचि रखते थे और दावपेच जानते थे। और यही नहीं ये लाठी चलाने, नदी में तैरने तथा गुलेल से निशाना लगाना , में अपना मन लगते थे। इनके अंदर एक और बहुत अच्छा गुड़ था की ये लोगो की सहायता करते थे। और हमेशा जब भी कोई इनसे सहायता मांगने आता था , तो ये सहायता करने से पीछे नहीं हटते थे।

इसलिए ये किसी अन्याय का सहन नहीं करते थे। एक बार की बात है, जब भी किसी ग़रीब किसान की फसल को बलपूर्वक काटने और ले जाने के लिए ज़मींदार के गुंडे उस किसान के खेत पर पहुंचे तो हमीद ने उनको रोकते थे और उनको खाली हाथ वापस लौटना पड़ता था। इसी तरह बाढ़ प्रभावित गाँव की नदी में डूबती युवक और युवतियों को बचाकर अपने साहस का परिचय दिया करते थे।

जब अब्दुल हमीद 21 वर्ष के हो गए तो जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के लिए गये, लेकिन उनके मन में सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना था। अतः उन्होंने वर्ष 1954 में एक सैनिक के रूप में भारत की सेना में भर्ती हो गए । हमीद 27 दिसंबर, 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू काश्मीर में तैनात होने के बाद अब्दुल हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों पर अपना नजर रखते थे, और एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को भी उन्होंने पकड़वाया तो सेना ने इनका प्रोत्साहित करने के लिए, प्रोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया। जब 1962 में चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका, और छल कपट किया तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे, उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला पाया था। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु से लड़कर उसे मार गिराना।

जब 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अब्दुल हमीद को फिर से सुअवसर प्राप्त हुआ अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का। युद्ध में जाने से पूर्व, उनके अपने भाई को कहे शब्द इस प्रकार है, "पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र ज़रूर लेकर लौटेंगे।”

इस प्रकार उनकी भविष्यवाणी पूर्ण हुई और 10 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान की सेना अपने गलत इरादों के साथ अमृतसर को घेरने और उसको अपने नियंत्रण में लेने को तैयार थी, तब अब्दुल हमीद ने पाक सेना को अपने अभेद टैंकों के साथ आगे बढ़ते देखा।अब्दुल हमीद, अपने प्राणों की बिना चिंता किये, अपनी तोप युक्त जीप को टीले के पीछे खड़ा किया और गोले बरसाते हुए दुश्मनों के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले। इसके बाद पाक अधिकारी क्रोध और आश्चर्य में थे, उनके मिशन में बाधक डालने वाले अब्दुल हमीद पर उनकी नज़र पड़ी और उनको घेर कर गोलों से भून दिया। इससे पहले कि वो उनका एक और टैंक ध्वस्त कर पाते, दुश्मन की गोलाबारी से उनकी शहादत हो गयी। अब्दुल हमीद का शौर्य, पराक्रम और बलिदान ने सेना के शेष जवानों में जोश भर दिया और दुश्मन को मार कर खदेड़ दिया।

अब्दुल हमीद, 32 वर्ष की आयु में ही अपने प्राणों को देश पर न्यौछावर कर दिया था, इस वीर को उसकी शहादत पर कोटि कोटि नमन किया जाता है। और मरणोपरांत उनको सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो उनकी पत्नी श्रीमती रसूली बीबी ने प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त भी उनको समर सेवा पदक, सैन्य सेवा पदक और रक्षा पदक प्रदान किये गए।

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