भगवान विष्णु के कई अनन्य भक्त हुए है, जिनमें ध्रुव का नाम सबसे पहले आता है। आसमान में उत्तर दिशा में चमकते हुए तारे को ध्रुव तारा कहते हैं। ध्रुव तारे का संबंध भगवान विष्णु के सबसे प्रिय भक्त ध्रुव से माना गया है। भगवान विष्णु और ध्रुव की कथा बहुत प्रसिद्ध है।
विष्णु पुराण के अनुसार, राजा उत्तानपाद के दो रानियां थीं। बड़ी रानी का नाम सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था। सुनीति ने ध्रुव को जन्म दिया तथा सुरुचि ने उत्तम को जन्म दिया था। उत्तानपाद की पहली पत्नी रानी सुनीति थी, परन्तु राजा उत्तानपाद को सुरुचि व उसका पुत्र उत्तम ज्यादा प्रिय थे। राजा उत्तानपाद ने एक दिन ध्रुव को अपनी गोद में बैठाकर रखा था।
तभी रानी सुरुचि वहां आई और ध्रुव को राजा की गोद में बैठा देखकर गुस्से से ध्रुव को राजा की गोद से उतार दिया और अपने पुत्र को राजा की गोद में बैठा दिया। इसके बाद वह बोली कि जिसे मैंने जन्म दिया है, वही राज सिंहासन का उत्तराधिकारी बनेगा। जब उसने गोद में बैठने के लिए बच्चे के साथ अशिष्ट व्यवहार किया तो उसने हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया। और जब बच्चे ने सोचा कि वह अपने पिता की गोद में क्यों नहीं बैठ सकता है।
ये सब सुनकर ध्रुव रोते हुए अपनी माता सुनीति के पास गए और सारी बात बताई। तब रानी सुनीति ने कहा कि तुम्हारे पिता को तुम्हारी सौतेली मां और उसका पुत्र अधिक प्रिय है। अब हमारा सहारा केवल भगवान विष्णु ही हैं।; अपनी दोनों मां की बात से ध्रुव का मन बहुत आहत हुआ।
उनसे भगवान विष्णु से अपने प्रश्न का उत्तर देने के लिए आग्रह करने को कहा।इसलिए ध्रुव भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने के लिए वन में चले गए। छोटे लड़के की ईमानदारी और भक्ति ने ऋषि नारद का ध्यान खींचा, जिन्होंने बच्चे को तपस्या करने से रोकने का प्रयास किया। उसे पता चला कि बच्चे ने खाना और पानी छोड़ दिया है। और इसलिए जब ध्रुव ने अपने फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया, तो नारद मुनि ने एक मंत्र साझा किया जिससे अंततः उन्हें अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने में मदद मिली।
नारद मुनि द्वारा ध्रुव को मिला मंत्र:
एक दिन ध्रुव भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने के लिए वन में चले गए। तभी रास्ते में उन्हें नारद मुनि मिले और नारद मुनि ने ध्रुव को ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का मंत्र दिया। ध्रुव यमुना नदी के तट पर जाकर इस मंत्र का जाप करने लगे। तपस्या के समय ध्रुव की आयु मात्र पांच वर्ष की थी।
भगवान विष्णु ने दिए दर्शन:
ध्रुव ने 6 महीने तक कठोर तपस्या की। तब भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उन्हें अपनी गोद में बिठाया। भगवान ने कहा कि तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। भगवान विष्णु ने कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हें वह लोक प्रदान करता हूं, जहा जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्कर घूमता है और जिसके आधार पर सब ग्रह-नक्षत्र घूमते हैं। इसी तरह ध्रुव भगवान विष्णु के प्रिय भक्त कहलाए और सप्त ऋषि मंडल में ध्रुव तारे के नाम से जाने जाते हैं।
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