2. बाबासाहेब और लाइब्रेरियन:
एक बार वे लंच टाइम में अकेले लाइब्रेरी में बैठ-बैठे ब्रेड का एक टुकड़ा खा रहे थे कि तभी लाइब्रेरियन ने उन्हें देख लिया और उन्हें डांटने लगा कि कैफेटेरिया में जाने की बजाय वे यहाँ छिप कर खाना खा रहे हैं। लाइब्रेरियन ने उनपर फाइन लगाने और उनकी मेम्बरशिप ख़त्म करने की धमकी दी।उन्होंने यह भी बड़ी ईमानदारी से कबूल किया कि कैफेटेरिया में जाकर लंच करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। उनकी बात सुनकर लाइब्रेरियन बोला- तुम मेरे साथ कैफेटेरिया चलोगे और मैं तुमसे अपना खाना शेयर करूँगा।
3. खयाल कौन रखेगा:
डॉ. आंबेडकर जब अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। वह रोज सुबह लाइब्रेरी खुलने से पहले ही वहां पहुँच जाते थे और सबके जाने के बाद ही वे वहां से निकलते थे। उन्हें रोज ऐसा करते देख एक दिन चपरासी ने उनसे पूछा, क्यों तुम हमेशा गंभीर रहते हो, बस पढाई ही करते रहते हो और कभी किसी दोस्त के साथ मौज-मस्ती नहीं करते? तब बाबा साहेब बोले- अगर मैं ऐसा करूँगा तो मेरे लोगों का ख़याल कौन रखेगा?
4. संस्कृत का ज्ञान:
बाबासाहेब भारत के नए संविधान मे सभी भाषाओँ की जननी संस्कृत को भी स्थान देना चाहते थे। लेकिन, अधिकतर सदस्यों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया। इस दौरान जब एक बार संस्कृत भाषा को लेकर श्री लाल बहादुर शाश्त्री और आंबेडकर जी के बीच चर्चा हो रही थी तब लोगों ने देखा कि दोनों ही महान हस्तियाँ संस्कृत में वार्तालाप कर रहें हैं।
5. चपरासी नहीं, पानी नहीं:
बाबासाहेब को विद्यालय में बाकी छात्रों के साथ नहीं बैठ सकते थे और उन्हें कक्षा के बाहर बैठ कर पढना पड़ता था। इसके अलावा उन्हें विद्यालय का नल छूने की भी अनुमति नहीं थी। उन्हें सिर्फ एक ही सूरत में पानी मिल सकता था, जब विद्यालय का चपरासी भी उपस्थित हो।