पुराणों में बुद्ध को भगवान विष्णु को नौवां अवतार मानते है,इसलिए हिंदुओं में भी ये दिन बहुत अच्छा माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
गौतम बुद्ध का जन्म छठी शताब्दी, ईसा पूर्व में हुआ था। कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी माया ने लुंबिनी नाम के वन में एक बालक का जन्म दिया था। उस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के जन्म के कुछ दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था। फिर महामाया की बहन गौतमी ने उनका पालन पोषण किया था।
सिद्धार्थ राजा के पुत्र थे, इसलिए इनका लालन-पालन राजसी ठाठ-बाट से हुआ था। सिर्फ सोलह साल की उम्र में उनका विवाह यशोधरा से हो गया था। सिद्धार्थ और यशोधरा ने एक शिशु को भी जन्म दिया, जिसका नाम बड़े प्रेम से राहुल रखा गया।
सिद्धार्थ के पास भोग विलास की सभी सुख सुविधाएं थीं। उनके पास कई महल थे। उनमें हजारों नौकर और नौकरानियां और मनोरंजन के भरपूर साधन थे। एक दिन सिद्धार्थ सैर के लिए निकले। तभी उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति दिखाई दिया। उसके बाल सफेद हो गये थे, चेहरे पर झुर्रियां और थकान थी, शरीर कमजोर हो चुका थी, कमर झुक गई थी। बड़ी मुश्किल से वह चल पा रहा था। सिद्धार्थ ने यह देखा तो दुखी हो गए।
थोड़ा आगे बढ़े तो एक बीमार व्यक्ति दिखाई दिया, जो अपने अंतिम पड़ाव पर था। वह जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था। सिद्धार्थ थोड़ा आगे बढ़े तो वहां से एक अर्थी जा रही थी। चार लोग शव को कंधे पर ले जा रहे हैं, और "राम नाम सत्य है!" बोल रहे हैं, साथ के कुछ लोग रो भी रहे हैं।यह सब देखकर सिद्धार्थ चिंतित और हैरान हो गए।
सिद्धार्थ मन ही मन में सोचने लगे कि एक दिन मैं भी बूढ़ा और बीमार हो जाऊंगा, फिर मेरी मृत्यु हो जाएगी। ऐसा सोच कर चिंतित हो गए। इसके बाद सिद्धार्थ को फिर रास्ते में एक संन्यासी मिला, जिसके चेहरे पर एक अलग सा तेज साफ झलक रहा था। संन्यासी का मन सारी मोहमाया से दूर था, होठों पर एक अलग सी चमक थी। सिद्धार्थ को पूरी बात समझ में आ गई ।
सिद्धार्थ अपने महल में वापस आ गए। उन्होंने सबकुछ भोग विलास त्यागकर संन्यासी बनने का मन बना लिया। और अपनी पत्नी और नवजात पुत्र को छोड़कर वन में चले गए। उन्होंने कई वर्षों तक कठोर तप की। लगभग 35 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन गए। सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति वैशाख मास की पूर्णिमा को हुई थी। इसलिए बौद्ध अनुयायी हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।
इंग्लिश में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे
0 Comments