महाराणा प्रताप: जन्म, चित्तौड़गढ़, जीवनी, इतिहास

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महाराणा प्रताप: जन्म, चित्तौड़गढ़, जीवनी, इतिहास

Maharana Pratap

भारत के इतिहास में बहुत से राजाओं का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहां के राजाओं ने देश, जाति, धर्म, स्वाधीनता तथा राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों कीं बिना चिंता किये, बलिदान देने में कभी किसी भी तरह का संकोच नहीं किया। उन महापुरुषों के त्याग पर संपूर्ण भारत को हमेशा से गर्व रहा है। वीरों की इस पवित्र भूमि में राजपूतों के छोटे-बड़े अनेक राज्य भी शामिल रहे है। भारत की स्वाधीनता और अखंडता के लिए संघर्ष कर युद्ध लड़ा। इन्हीं सभी राज्यों में से एक नाम मेवाड़ का , एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव को बढ़ाने वाले महाराणा सांगा, प्रथम महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, उदयसिंह और वीर महाराणा प्रताप ने जन्म लिया था।

महाराणा प्रताप को कौन नहीं जनता है जो उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के महान राजा थे। इस महान राजा का नाम इतिहास के पन्नो में वीरता और दृढ प्रतिज्ञा के लिये अमर है। इस महान राजा ने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ युद्ध और संघर्ष किया। यही नहीं, महाराणा प्रताप ने मुगलो को भी कई बार युद्ध में पराजित किया। इस महान राजा का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह तथा माता राणी जीवत कँवर के राज घराने में हुआ था।

महान राजा महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। इनकी माता का नाम जैवन्ताबाई, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से बुलाया जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ था । बचपन से ही महाराणा प्रताप वीर, साहसी, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रताप्रिय ब्यक्ति थे। सन 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें बहुत से संकटो का सामना किया, मगर धैर्य, बीरता और साहस के साथ उन्होंने हर परिस्थित का सामना किया था।

मुगलों की बहुत बड़ी सेना से हल्दी घाटी में उनका युद्ध हुआ। वहा उन्होंने जो पराक्रम और साहस दिखाया, वह भारतीय इतिहास में बेमिसाल है, उन्होंने अपने पूर्वजों की मान सम्मान, मर्यादा की रक्षा की और प्रतिज्ञा किया की जब तक वे अपने राज्य को मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक राज्य के सुख, चैन का भोग नहीं करेंगे। तब से वह भूमी पर घास के ऊपर सोने लगे, वह अरावली के जंगलो में बड़े कष्ट सहते हुए भटकते रहते थे, परन्तु उन्होंने मुग़लो की अधीनता स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

महाराणा प्रताप के पिता उनको अपने जैसा कुशल योद्धा बनाना चाहते थे इसलिय बचपन से ही शस्त्र चलाने की शिक्षा देने लगे। बालक महाराणा प्रताप ने बहुत कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय दे दिया था।जब वो बच्चो के साथ खेलते थे तो दल बना कर खेलते थे।दल के सभी बच्चो के साथ साथ मिलकर शश्त्रो का अभ्यास भी करते थे जिससे वो हथियार चलाने की विद्या सीख गये। इस तरह महाराणा प्रताप अस्त्र शश्त्र चलाने में निपुण हो गये और उनका आत्मविश्वास को देखकर उनके पिता उदय सिंह फुले नही समाते थे।

महाराणा प्रताप के पिता अपने भाई के बेटे जगमाल को राजा बनाना चाहते थे, परन्तु राज्य की प्रजा जगमाल को नहीं बल्कि महाराणा प्रताप से प्रेम करती थी और राजा के रूप में देखना चाहती थी। और जगमाल राजा बनना चाहता था, इसलिए जगमाल क्रोधित और नाराज हो कर, महाराणा प्रताप से बदला लेने के लिए अजमेर पंहुचा और अकबर से मिलकर , अकबर की सेना में शामिल हो गया। अकबर ने उसे बदले में जहाजपुर की जागीर दे दी।

उस समय दिल्ली पर अकबर का शासन था। और अकबर अपने बल का प्रयोग कर के हिन्दू राजाओ को या तो अपने निचे रख कर हुकुम चलाता था और जो नहीं मानता था उससे युद्ध करता था। और कुछ ऐसा ही महाराणा प्रताप के साथ हुआ और अकबर से यद्ध हुआ।

विशाल मुग़ल सेना के साथ महाराणा प्रताप की छोटी सी सेना का युद्ध हुआ। लेकिन महाराणा प्रताप ने हार नहीं माना। महाराणा प्रताप वनो और जंगलो में रहने लगे, खाने के लिए कुछ नहीं मिलता था तो घास फूस को अपना आहार बनाते थे और अकबर से कभी हार नहीं माना यद्ध करते रहे।

महाराणा प्रताप के पास एक घोड़ा था जिस पर राणा प्रताप खुद बैठते थे। ऐसा माना जाता है की वह घोडा बहुत बड़ा स्वामी भक्त था। उस घोड़े का नाम चेतक था। चेतक इतना समझदार था की हर परिश्थित को समझ जाता था। इसलिए कई बार उसने महाराणा प्रताप की जान बचायी।

हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास में सत्र 18 जून 1576 में हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों के बीच घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़लो की सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था।

कई कठिनायिओ सामना करने के बाद भी राणा प्रताप ने हार नहीं माना था और अपने बल, पराक्रम को दिखाया । और इसी कारण आज उनका नाम इतहास के पन्नो पर चमक रहा है। कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं, कि हल्दीघाटी के युद्ध में किसी की विजय नहीं हुयी थी, परन्तु देखा जाये तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुयी थी। क्योकि छोटी सेना के परिश्रम और दृढ़ संकल्प के कारण महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना की छक्के छुड़ा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था।

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