दूसरे दिन उसने सुबह ही शिकार का सामान ठीक-ठाक किया और उसी हब्शी को लेकर जंगल की तरफ चला गया। कई सिपाही भी मौजूद थे । वे भी अपनी छोलदारियाँ और बन्दूकें लेकर चलने को तैयार हो गये। हब्शी राह दिखाता हुआ आगे-आगे चलने लगा।दिन भर लगातार चलने के बाद वे लोग उबांशियों के गाँव में पहुँचे। रास्ते में बहुत से जानवर मिले, पर बनमानुस का कहीं निशान तक न मिला। अफ्रीका के सब गाँव करीब-करीब एक ही तरह के होते हैं। गाँव के बीच में उबांशियों के सरदार का झोपड़ा था, चारों ओर बाँसों से घिरा हुआ था। एक बड़े डील-डौल का आदमी कंधे पर बन्दूक रखे झोपड़े के सामने टहल रहा था ।
शिकारियों की खबर पाकर उबांशी सरदार उनसे मिलने आया और फौजी सलाम करके बोला- अब मुझे उम्मीद है कि बनमानुस जरूर मारा जायगा। हम लोगों का तो घर से निकलना मुश्किल हो गया है। शिकारी ने गुरूर के साथ कहा- हाँ, देखो क्या होता है, आया तो इसी इरादे से हू।शिकारियों ने अपनी छोलदारियाँ सरदार के झोपड़ी के पास में लगा दिया और खाने पीने की करने की चिंता करने लगे कि अचानक किसी के कराहने की आवाज आई जैसे उसका कोई मर गया हो। शिकारी ने पूछा-यह कौन रो रहा है ?
हब्शी ने घबढ़ायी हुई आवाज में कहा- हुजूर, यह वही बनमानुस है । दिन भर अपने मु्र्दा जोड़े के पास बैठा रोता है और रात होते ही इधर-उघर घूमने लगता है। मालूम नहीं किस वक्त चुपके गाँव में घुस जाता है और किसी न किसी को मार डालता है। लोग दिन भर के थके-माँदे, भूखे-प्यासे थे । बनमानुस का शिकार करने की किसे सूझती थी। जब लोग खा-पीकर बैठे हुए तो सलाह करने लगे कि बनमानुस का शिकार कैसे किया जाय। उबांशी सरदार ने कहा-रात को आप लोग उसे नहीं पा सकते । दिन को ही उसका शिकार हो सकता है।
शिकारियों को भी उसकी सलाह पसन्द आई। सब अपनी-अपनी छोलदारियों में घुस गये और बाहर पहरे का यह बन्दोबस्त कर दिया कि दो-दो घंटे के बाद पहरा बदल दिया जाय । शिकारी थका था, जल्दी ही सो गया। लेकिन थोड़ी ही देर सोया था कि उसकी नींद टूट गई और सामने एक परछाईं-सी खड़ी दिखायी दी । उसकी आंखें आग की तरह जल रही थीं। अफसर ने आवाज दी - संतरी। पर कोई जवाब न मिला। आवाज संतरी के कानों तक पहुँची भी या नहीं।अफसर ने तुरन्त बिजली की बत्ती जलाई। सामने छ फीट का बनमानुस खड़ा था और उसके हाथ में संतरी की बन्दूक थी, जिसकी नली बिलकुल ही टेढ़ी-मेढ़ी हो गई थी । वह शिकारी की ओर ध्यान से देख रहा था, जैसे सोच रहा हो कि इसे मारूं या छोड़ दूँ । उसका डरावना चेहरा देखकर शिकारी की आवाज रुक गई, मुंह से आवाज तक नही निकल रही थी ।
अचानक बाहर किसी चीज के गिरने आवाज आयी। बनमानुस ने झट बन्दूक फेंक दी और उछलकर छोलदारी से बाहर निकल गया। अब अफसर साहब के होश ठिकाने हुए। बिस्तर से उठे, बन्दूक संभाली, बाहर निकले और लालटेन लेकर बनमानुस को तलाश करने लगे। मगर इससे ज्यादा आश्चर्य की बात यह थी कि उस संतरी का भी कहीं पता नहीं था, जो पहरा दे रहा था ।
शिकारी ने संतरी को समझा दिया कि अब सावधान रहना, मगर सोने की हिम्मत न पड़ी । बिजली की रोशनी में बैठे-बैठे गप-सप करके रात काटी। दूसरे दिन तड़के सब लोग शिकार करने चले । गांव के आदमी उन्हें विदा करने के लिये गांव के बाहर तक आये। शिकारी लोग झाड़ियों की आड़ में छिपकर चलने लगे, जिससे बनमानुस उनकी आहट पाकर कहीं भाग न जाय ।जहाँ पर मादा बनमानुस मरी पड़ी थी, हृब्शी को वह जगह मालूम नही थी। उसी के पीछे-पीछे लोग चलते जा रहे थे। जाते-जाते रास्ते में एक जगह बड़ी बदबू आने लगी। वहीं रोने की आवाज़ सुनायी दी। शिकारी ने अपने साथियों से कहा, मैं आगे-आगे चलता हूँ, तुम लोग बन्दूकें तैयार रखो। मगर अभी दो सौ कदम भी न गया था कि उसे वह बनमानुस नजर आया। मगर वह अकेला न था। उसके जोड़े की लाश भी वहीं पड़ी हुई थी। बनमानुस उस लाश पर झुका हुआ अपने दोनों हाथों से छाती पीट-पीटकर रो रहा था। उसके चेहरे से ऐसा आभास हो रहा था, कि वह अपने जोड़े से कह रहा था कि एक बार फिर उठो, चलो यह देश छोड़ कर किसी और देश में जाकर बसें जहाँ के आदमी इतने निर्दयी, और कठोर न हो। जब वह देखता था कि उसके इतना समझाने पर भी मादा न बोलती है और न हिलती है, तो वह अपना छाती पीट - पीट कर रोने लगता था ।
यह हाल देख कर शिकारी का दिल दर्द से पिघल गया। बन्दूक उसके हाथ से गिर पड़ी, शिकारी का जोश ठंढा हो गया। साथियों को लेकर वह डेरे पर लौट आया । सब लोग वहाँ बैठ कर बातें करने लगे, जानवरों में भी कितनी प्रेम होती है, लाश सड़ गई है, मगर नर अभी तक उसे नहीं छोड़ रहा है। उबांशियों ने यह बहुत बुरा काम किया कि उसके जोड़े को मार डाला ।
अभी यही बातें हो रही थीं कि देखा कई आदमी एक लाश लिये चले आ रहे हैं। शिकारी लाश को फौरन पहचान गया । यह उस संतरी की लाश थी । समझ में आ गया कि उसी बनमानुस ने रात को उसे मार डाला है। शिकारी क्रोध से अन्धा हो गया, बोला - अब इस दुष्ट को मैं नहीं छोड़ूंगा । ऐसे खूनी जानवरों पर दया करना पाप है । आज उसका काम तमाम करके दी दम लूंगा ।
यह कह कर वह फिर उसी जगह जा पहुँचा, जहाँ मादा मरी पड़ी थी । मगर अबकी बनमानुस वहाँ न दिखायी दिया। तब ये लोग उसके पैर का निशान देखते हुए उसकी खोज करने लगे। आखिर एक पहाड़ी के नीचे से जहाँ एक पहाड़ी नदी बहती थी, बनमानुस आता हुआ दिखायी दिया । उसकी देह से बूंद-बूंद पानी टपक रहा था । शिकारियों को देखते ही पहले तो वह गरज उठा, फिर किसी शोक में डूबे हुए आदमी की तरह छाती पीट-पीट कर रोने लगा। वे लोग चुपचाप खड़े रहे । जब वह बिल्कुल पास आ गया तो अफसर ने उसके कंधे पर निशाना लगाकर गोली चलाई। वह जोर से चीखा और गिर पड़ा । उसका एक कन्धा जख्मी हो गया था, पर वह तुरन्त ही दूसरे हाथ के सहारे अफसर की तरफ दौड़ा । अफसर ने अबकी उसकी छाती पर गोली चलाई। शिकारियों ने समझा उसे मार दिया , मगर वह तुरन्त एक चट्टान फाँदकर भागा और जंगल में घुस गया।
शाम होने को थी । अब उसे ढूँढना बेकार समझकर शिकारी डेरे की तरफ लौट आये । क्योंकि यह मालूम था कि वह घायल हो गया है, फिर भी लोगों ने पहरे का बन्दोबस्त किया। अफसर साहब की नींद खुली ही थी कि एक हब्शी दौड़ा हुआ आया और बोला-साहब, वह तो फिर रो रहा है । अफसर ने ध्यान से सुना, और बोला यह तो वही रोने को आवाज है।
लोगों ने कपड़े पहने और बन्दूकें लेकर रवाना हो गये। उस जगह पहुँचकर ये लोग झाड़ियों की आड़ से दोनों बनमानुसों को देखा कि वह अपने जोड़े की लाश को अपने खून से रंगी हुई छाती से दबाकर रो रहा है। यह दर्दनाक माजरा देखकर शिकारियों की आंखें भी आंसू आ गए। यह तो मालूम ही था कि वह अब चोट नहीं कर सकता। शिकारी उसके बिल्कुल पास चला गया कि अगर हो सके तो उसे जीता पकड़कर मरहमपट्टी की जाय । उसे देखते ही बनमानुस ने बड़ी दर्दनाक आँखों से उसकी ओर देखा, मानो कह रहा था-क्यों देर करते हो, एक गोली और चला दो कि जल्द इस दुःख-भरे संसार से बिदा हो जाऊं ।
शिकारी ने ऐसा ही किया। एक गोली से उसका काम तमाम कर दिया। इधर बंदूक की आवाज हुई, उधर बनमानुस चित हो गया। मगर आावाज के साथ ही शिकारी का दिल भी काँप उठा। उसे ऐसा मालूम हुआ, मैंने खून किया है, मैं खूनी हूँ ।
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